प्रार्थना
दो.- मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर ।अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु विषम भव भीर ।।
मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला । मंदरू मेरू कि लेहि मराला ।।
मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी । दीन बंधु उर अंतरजामी ।।
जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें । सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें ।।
सेवक सुत पति मातु भरोसें । रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें ।।
असरन सरन बिरदु संभारी । मोहि जनि तजहु भगत हितकारी ।।
मोरें तुम्ह प्रभु गुरू पितु माता । जाऊँ कहाँ तजि पद जलजाता ।।
बालक जान बुद्धि बल हीना । राखहु सरन नाथ जन दीना ।।
बार बार मागऊँ कर जोरें । मनु परिहरै चरन जनि भोरें ।।
दो.- श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ।।
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