श्रीराम-नाम
(शनिवार)दो.- जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि ।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि ।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता । व्यापक अजित अनादि अनंता ।।
हरि बयापक सर्वत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ।।
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका । श्रुति कह अधिक एक तें एका ।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका । होउ नाथ अघ खग गन बधिका ।।
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ।।
करतल होहिं पदारथ चारी । तेर्इ सिय रामु कहेउ कामारी ।।
जासु नाम जपि सुनहु भवानी । भव बंधन काटी नर ग्यानी ।।
जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ।।
दो.- राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जो चाहसि उजिआर ।।
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