सद्नीति
(गुरुवार)दो.- ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग ।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ।।
सरल सुभाव न मन कुटिलार्इ । जथा लाभ संतोष सदार्इ ।।
बैर न बिग्रह आस न त्रासा । सुखमय ताहि सदा ब आसा ।।
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं । परूष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं ।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा । गुन प्रगटै अवगुनक्न्ह दुरावा ।।
देत लेत मन संक न धरर्इ । बल अनुमान सदा हित करर्इ ।।
बिपति काल कर सतगुन नेहा । श्रुति कह संत मित्र गुन एहा ।।
आगें कह मृदु बचन बनार्इ । पाछें अनहित मन कुटिलार्इ ।।
जा कर चित अहि गति सम भार्इ । अस कुमित्र परिहरेहिं भलार्इ ।।
दो.- पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद ।
ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ।।
From the desk of Sadhak Ajey
ReplyDeleteउत्थान पथ से : गुरुवार - सद्नीति ( Righteous Policy or Morality )
ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग।।
*1/ 7क
Men of keen insight realise that stars, medicine, water, air and cloth turn out good or bad in the world according to their good or evil company.
Ajey